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Home पर्वतजन

फिर लौट कर आई 18 मार्च 2016!

in पर्वतजन
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गजेंद्र रावत//

दूसरी बार अपने बिछाए जाल में उलझी भाजपा
रुपयों की धकाधूम में कायदे-कानून भूले नियमों के निर्माता

उत्तराखंड  के इतिहास में १८ मार्च २०१६ का दिन कुछ लोगों के लिए कभी न भूल पाने वाला रहा। ये वही दिन था, जब कांग्रेस के ९ विधायक अपनी विधायकी को ताक पर रखकर अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े होकर कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए सर पर कफन बांधकर सामने आए। काबीना मंत्री से लेकर संसदीय सचिव और तमाम बोर्डों के अध्यक्ष पद को ठुकरा कर अपनी ही सरकार को गिराने का यह पहला खेल उत्तराखंड में १८ मार्च २०१६ को खेला गया था। इस खेल को अमलीजामा पहनाने के लिए तब मध्य प्रदेश के बाहुबली कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश भाजपा प्रभारी श्याम जाजू दो दिनों तक देहरादून में अलग-अलग जगहों पर डेरा डाले रहे। ये सभी ९ कांग्रेस के बागी विधायक भाजपा विधायकों के साथ जोश में उन्हीं की बस में बैठकर राजभवन गए और अत्यधिक जोश में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट द्वारा तैयार किए गए पत्र पर हस्ताक्षर भी कर गए।

congress
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कांग्रेस के इन ९ बागी विधायकों की तरह कल ८ अगस्त २०१७ को गुजरात के दो कांग्रेसी विधायकों राघव भाई पटेल और भोला भाई गोहिल ने वही हरकत की, जो उत्तराखंड के तब के कांग्रेस के बागियों ने की थी। ये दो विधायक कांग्रेस से दगाबाजी कर भारतीय जनता पार्टी का विश्वास हासिल करने के चक्कर में अति उत्साह में होश खो बैठे और इन्होंने चुनाव आयोग की गाइड लाइन को दरकिनार करते हुए अपने द्वारा की गई क्रॉस वोटिंग को भाजपा के चुनावी एजेंटों को दिखाकर अपनी आस्था स्पष्ट कर दी या कहें कि जो सौदा क्रॉस वोटिंग के लिए तय हुआ होगा, उसका प्रमाण भाजपाइयों को दिखा दिया। इन दो बागी विधायकों द्वारा की गई हरकत का वीडियो जब कांग्रेस ने चुनाव आयोग के सामने रखा तो वही हुआ, जो उत्तराखंड में पहले ही हो चुका था।
उत्तराखंड के तत्कालीन अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने तमाम कानूनविदों की राय लेकर सिर्फ इस ग्राउंड पर नौ बागी विधायकों की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी थी और नैनीताल हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने गोविंद सिंह कुंजवाल के इस निर्णय को न्यायसंगत माना। कांग्रेस के ९ विधायक बगावत करने के बावजूद यदि अजय भट्ट के कहने पर उनके लिखे समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर न करते तो हरीश रावत की कुर्सी को खतरा पैदा हो सकता था, किंतु अति उत्साह में भाजपाइयों की गाड़ी में बैठकर गलबहियां करना, उन्हीं के हवाई जहाज से दिल्ली जाना भारी पड़ गया। बाद में केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड में लगाए गए राष्ट्रपति शासन पर जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई तो उस दिन भी भारतीय जनता पार्टी को उसी तरह मुंह की खानी पड़ी, जिस प्रकार कल गुजरात में अहमद पटेल के लिए बिछाए गए जाल में भाजपाई इस कदर उलझ गए कि भारी-भरकम रकम खर्च कर विधायकों को खरीदने के बावजूद वे सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल को राज्यसभा जाने से नहीं रोक पाए। हालांकि स्मृति ईरानी और अमित शाह दोनों राज्यसभा का चुनाव जीतने में सफल रहे, किंतु अहमद पटेल की जीत के सामने इन दोनों की जीत फीकी पड़ गई।अहमद पटेल की जीत से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के तीन वर्ष के चमत्कारिक कार्यकाल का मनाया जाने वाला जश्न भी थोड़ा सा फीका पड् गया। लंबे समय बाद कांग्रेसियों ने अपने राष्ट्रीय कार्यालय के साथ-साथ पूरे देश में अमित शाह और मोदी की हार पर जमकर पटाखे फोड़े।

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