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भाजपा और कांग्रेस के बीच सैंडबिच बने महाराज!

in पर्वतजन
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मामचन्द शाह//

नमोनाद के फ्लॉप होने से निशाने पर महाराज
नमोनाद कार्यक्रम पर हुए सरकारी खर्चे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष कर रहे आलोचना

दरअसल सतपाल महाराज भारतीय जनता पार्टी में आ तो गए हैं, लेकिन लगता है कि कुछ भाजपा के दिग्गज नेताओं को महाराज भाजपा में भा नहीं रहे हैं तो कुछ भाजपा की कार्य संस्कृति उनकी समझ में नहीं आ रही है।
भाजपा के कुछ नेता अब ढूंढ-ढूंढकर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी न किसी रूप में महाराज पर निशाना साधने लगे हैं। मीडिया में महाराज के प्रति सौहार्द दिखाने वाले एक नेता नमोनाद के बाद से महाराज के बढ़ते कद को देखकर अपने भविष्य के प्रति आशंकित हो गए हैं। उनका कहना है कि सतपाल महाराज ने सावन के अंधेरे महीने में नमोनाद करवाकर उत्तराखंड और नरेंद्र मोदी के लिए अपशकुन कर दिया है।
यही नहीं एक और भाजपा नेता ने अब नया शिगूफा छेड़ दिया है कि पहले देवगौड़ा सरकार में केंद्र में रेल राज्य मंत्री और यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस से सांसद रहे सतपाल महाराज तब एक रुपए वेतन लेकर पहले तीसरे मोर्चे की गठबंधन सरकार और बाद में मनमोहन सिंह की सरकार में भारी आस्था जताते थे।
नेताजी कहते हैं कि आश्चर्यजनक रूप से उत्तराखंड में मंत्री बनकर सतपाल महाराज तकरीबन दो लाख रुपए वेतन भत्ते गाड़ी, घोड़ा व सुरक्षा लेकर चल रहे हैं। अब देवगौड़ा और मनमोहन सिंह के प्रति क्या आस्था थी और आज त्रिवेंद्र रावत पर क्यों विश्वास नहीं, ये तो सतपाल महाराज ही जानें, किंतु महाराज के इस रवैये की जमकर चर्चा हो रही है कि आखिकार एक रुपए वेतन लेकर किए जाने वाले पुण्य को आखिरकार अपनी सरकार में क्यों पलट दिया गया।
१० अगस्त को बिना किसी चिन्हींकरण और अतिक्रमण हटाने के नोटिस दिए बगैर हरिद्वार के मेयर द्वारा सतपाल महाराज के आश्रम की दीवार को तोड़ा जाना भी कई सवाल खड़े करता है। ऐसा लगता है कि जलभराव तो केवल एक बहाना था। अतिक्रमण हटाने वाली टीम को साथ लेने के बजाय मेयर अपने समर्थकों के साथ सतपाल महाराज के आश्रम में दीवार हटाने के लिए जाना कई राजनीतिक सवाल खड़े कर गया। १० अगस्त की घटना के साथ-साथ हरीश रावत द्वारा महाराज के ऋषिकेश स्थित आश्रम को सीज करने की पुरानी ही खबरों की कटिंग का सोशल में तैरना बताता है कि महाराज की राह अभी और कठिन होने वाली है। महाराज को मोहन भागवत से लेकर अमित शाह का भी करीबी माना जाता है। हालात यह हैं कि कांग्रेस महाराज के भाजपा में जाने की खुन्नस मिटाने के लिए महाराज को कोस रही है तो भाजपाई महाराज के भाजपा में आने के बाद से अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर खासे आशंकित हैं।

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