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वीवीआईपी सुरक्षा में अन्टे्रंड गनर

July 10, 2017
in पर्वतजन
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भूपेंद्र कुमार

वीआईपी सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों को अंगरक्षक का प्रशिक्षण न होने के कारण महानुभावों को जान का खतरा
क्या आपको मालूम है कि उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश सहित अधिकांश कैबिनेट मंत्रियों और अन्य वीवीआईपी के अंगरक्षकों को हथियार चलाना ही नहीं आता।
पुलिस मुख्यालय ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी दी कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सुरक्षा में तैनात हेड कांस्टेबल मनमोहन सिंह को सुरक्षा के लिए पिस्टल उपलब्ध कराई गई है, किंतु उन्होंने शेडो/अंगरक्षक का कोर्स ही नहीं किया है।
केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा को उपलब्ध कराया गया जनार्दन सिंह नाम के सुरक्षा कर्मी को पिस्टल दी गई है, किंतु उन्होंने भी गनर का कोर्स नहीं किया है।
इसी तरह कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे को दो गनर उपलब्ध कराए गए हैं। राजेश गिरि तथा सूरज कुमार नाम के इन सुरक्षाकर्मियों को पिस्टल उपलब्ध कराई गई है, लेकिन इन्होंने भी कोर्स पूरा नहीं किया है। कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के गनर दयानन्द को कार्बाइन तो दी गई है, किंतु इन्होंने भी कोर्स नहीं किया है।
हथियार की नहीं ट्रेनिंग
उत्तराखंड में वीवीआईपी तथा वीआईपी लोगों की सुरक्षा के लिए उपलब्ध कराए गए अधिकांश बॉडीगार्ड को हथियार चलाने की टे्रनिंग ही नहीं है। ऐसे में ये बॉडीगार्ड सिर्फ शान बढ़ाने के काम तक सीमित हैं। ऐसे तमाम वीवीआईपी लोग जिन्हें वाकई सुरक्षा की जरूरत है, उनकी जान गंभीर खतरे में है। वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा में उत्तराखंड के अधिकांश गनर तथा सुरक्षा कर्मियों को बिना प्रशिक्षण के ही अंगरक्षक की ड्यूटी के लिए तैनात कर दिया जाता है। एक तथ्य यह है कि सब इंस्पेक्टर पद से नीचे गनर की ड्यूटी करने वाले हेड कांस्टेबलों तथा कांस्टेबलों को शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य है। सुरक्षा कर्मियों को गनर की ड्यूटी के लिए ३०३ राइफल, एसएलआर, कार्बाइन, पिस्टल या रिवाल्वर उपलब्ध कराई जाती है। अधिकांश हेड कांस्टेबलों तथा कांस्टेबलों को रिवाल्वर/पिस्टल चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
ऐसे हुआ खुलासा
पिछले दिनों इस संवाददाता ने पुलिस मुख्यालय से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी कि किन-किन वीवीआईपी की सुरक्षा में तैनात अंगरक्षकों (कांस्टेबल/हेड कांस्टेबलों) को पिस्टल चलाने का प्रशिक्षण दिया गया है।
पुलिस लाइन अल्मोड़ा द्वारा दी गई एक सूचना के अनुसार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चौहान सहित सुरेंद्र सिंह जीना, करन सिंह महरा, महेश नेगी, गोविंद सिंह कुंजवाल आदि विधायकों और जिला पंचायत अध्यक्ष पार्वतीय महरा के गनर को कार्बाइन तो थमा दी गई, किंतु इन्हें भी गनर अथवा शेडो का कोर्स नहीं कराया गया है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य के गनर को भी पिस्टल उपलब्ध कराई गई है, किंतु उनको भी कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। अल्मोड़ा पुलिस लाइन के प्रतिसार निरीक्षक यह बात स्वीकार करते हैं कि जिन भी कर्मचारीगण को पिस्टल प्रदान की गई है तथा जिन्होंने भी शेडो गनर कोर्स नहीं किया है, उन्हें उच्चाधिकारियों के आदेश पर गनर बनाकर भेजा गया है। वह बचाव करते हुए लिखते हैं कि उन गनरों को दिए गए असलहा के बारे में स्थानीय स्तर पर आवश्यक जानकारी प्रदान की गई है।
कई जज व वीवीआईपी खतरे में
नैनीताल जनपद में अधिकांश विधायकों और हाईकोर्ट के जजों के अंगरक्षकों को पिस्टल प्रदान की गई है। नैनीताल के प्रतिसार निरीक्षक कहते हैं कि जिन-जिन महानुभावों की सुरक्षा में लगे कर्मचारी ने शेडो, गनर का कोर्स नहीं किया है, उन्हें उच्चाधिकारियों के आदेशानुसार पुलिस लाइन नैनीताल में १५ दिन का शस्त्र हैंडलिंग का प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के बाद ही गनर ड्यूटी के लिए भेजा गया है। सूचना के अधिकार में प्राप्त उपरोक्त तथ्यों का विश्लेषण करने पर यह आशंका बलवती हो जाती है कि पुलिस प्रशासन न्यायिक सेवा में लगे उच्चाधिकारियों तथा सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील वीवीआईपी की सुरक्षा के प्रति संवेदनहीन है। वीआईपी सुरक्षा में तैनात ये अप्रशिक्षित अंगरक्षक वीआईपी लोगों की सुरक्षा तो क्या करेंगे, किसी आपात स्थिति में इनकी खुद की जान के लाले पड़ सकते हैं।
राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात हेड कांस्टेबल तथा कांस्टेबल द्वारा लिए गए प्रशिक्षण के बारे में भी जानकारी मांगी गई थी, किंतु इनकी सूचना देने के बजाय पुलिस मुख्यालय ने खामोशी ओढ़ ली। जाहिर है कि यह महानुभावों की सुरक्षा और उनके मानवाधिकारों के प्रति गंभीर लापरवाही है।
शान बढ़ाने को गनर
इसके अलावा यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि जिन महानुभावों को सुरक्षा की कोई जरूरत नहीं होती, वे अपनी शान बढ़ाने के लिए अपनी जान-पहचान वाले पुलिसकर्मियों को सुरक्षा ड्यूटी में बुला लेते हैं तथा उनसे घरेलू काम कराते हैं।
टिहरी की एक विधानसभा के तत्कालीन विधायक तो अपने गनर से गमलों में पानी डलवाने तथा सब्जियां मंगवाने का काम करवाते थे। इन माननीय की मनमानी के कारण मात्र दो साल में ही इनकी सुरक्षा में २४ गनर बदल दिए गए। यह विधायक अपने गनरों के साथ इतनी बदसलूकी से पेश आते थे कि कोई गनर आसानी से उनके साथ ड्यूटी को राजी नहीं होता था।
सार्वजनिक कार्यक्रमों में फाइलिंग करने के लिए चर्चित हरिद्वार के एक विधायक ने तो हाल ही में अपने लिए तथा पत्नी, पिता आदि के लिए भी अलग-अलग गनरों की मांग कर रखी है।
ऐसे कई महानुभाव हैं, जो सियासी रसूख से गनर हासिल करके उनसे सुरक्षा कार्यों को छोड़ बाकी सभी काम करवाते हैं। इससे सुरक्षा कर्मियों के आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचती है।


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