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भिड़े सीएम से चतुर्वेदी: भ्रष्ट डीएफओ की जांच दबने पर खफा  

April 22, 2018
in पर्वतजन
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कृष्णा बिष्ट
देहरादून में कल सिविल सर्विस अधिकारियों के सम्मेलन मे अपने संबोधन मे सीएम त्रिवेंद्र ने जैसे ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टाॅलरेंस वाला अपना चिर-परिचित “वाक्य” दोहराया तो आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने उनको असहज कर दिया।चतुर्वेदी ने उनसे पूछ लिया कि अगर जीरो टोलरेंस की नीति है तो डीएफओ एके गुप्ता की जांच रिपोर्ट को छह माह से क्यों लटकाया जा रहा है ? चतुर्वेदी के सवालों का संज्ञान लेकर सीएम ने इस पर जल्दी ही कार्रवाई का आश्वासन दिया।
देहरादून के मंथन सभागार मे सिविल सर्विस डे के मौके पर जिस प्रकार भ्रष्टाचार व जीरो टाॅलरेन्स के जुमलों पर मुख्यमंत्री को आड़े हाथ लिया। इसकी मुख्यमंत्री को भी उम्मीद न थी। चतुर्वेदी का साफ़–साफ़ कहना था कि भ्रष्टाचार को जुमलों व भाषणों से मिटाया जाना संभव नहीं है।
 जब तक पटवारी, जे.ई के बजाय बड़े अधिकारियों व नेताओं पर कार्रवाई  नहीं होगी, तब तक भ्रष्टाचार व जीरो टाॅलरेंस की बात करना बेमानी होगी। अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना है तो इसके लिए एक अलग और शक्तिशाली एजेंसी का निर्माण आवश्यक है। संजीव ने भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए लोकपाल या लोकायुक्त की नियुक्ति पर भी जोर दिया।
इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहा जाए ! एक तरफ़ तो मुख्यमंत्री सिवल सर्विस डे के मौके पर भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करते हैं और दूसरी ओर उनकी सरकार मे जाँच रिपोर्ट महीनों तक धूल –फांकती रहती है।
कभी भ्रष्टाचार व गुड गवर्नेंस के मुद्दे पर हरीश रावत सरकार को पानी पी–पी कर कोसने वाली बीजेपी आज खुद उसी डगर पर कुलाचें भर रही है। ये हम नहीं बल्कि डबल इंजन सरकार के कारनामे बयां कर रहे हैं।
यह है भ्रष्ट डीएफओ की जांच का प्रकरण
 पिछले साल सितंबर माह मे चंपावत के पूर्व डीएफओ ए.के गुप्ता का लीसा ठेकेदार से 3 रुपया प्रति टिन का कमीशन मांगने वाला ऑडियो वायरल होने के बाद, इस का शासन ने संज्ञान लेते हुए गुप्ता को उसी  दिन पहले वन मुख्यालय से संबद्ध किया और फिर गुप्ता के चंपावत वन प्रभाग में छह साल के कार्यकाल में हुए कार्यों की जांच एम्स के पूर्व मुख्य सतर्कता अधिकारी रहे वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी को सौंप दी। संजीव चतुर्वेदी ने 22 लोगों को उनके बायोडाटा के आधार पर चुन कर दो टीम बनाई और एक माह मे जाँच पूरी कर 30 नवम्बर को लगभग 2000 पन्नों की भारी –भरकम जाँच रिपोर्ट अपने मुख्यालय को सौंप दी, जिसका दिसंबर में तीन मुख्य वन संरक्षकों की टीम द्वारा बारीकी से अध्ययन किया गया।
रिपोर्ट में ए.के गुप्ता के छह वर्षो के कार्यकाल के दौरान चंपावत वन प्रभाग मे छिलका- गुलिया के नाम पर बड़े पैमाने पर पेड़ों के दोहन, शासनादेशों व नियमों की खुली अवहेलना,लीसा मद में करोड़ों की वित्तीय -व्यय जैसी भारी अनिमित्ताओं की बात सामने आई। जिसके आधार पर जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट मे इस मामले को राज्य सतर्कता ब्यूरो को सौंपने और भ्रष्टाचार निरोधक एक्ट के तहत कार्यवाही, वसूली आदि कई सिफारिश की गई थी।
इसके बाद जनवरी में तत्कालीन पी.सी.सी.एफ महाजन ने इस मामले में कार्रवाई का अनुमोदन करते हुए रिपोर्ट शासन को भेजी दी, जिसके बाद मार्च मे अपर मुख्य सचिव डॉ.रणवीर सिंह ने भी इस पर अपनी मुहर लगा कर फाइल वन मंत्री को भेज दी किन्तु लगभग एक माह बाद अप्रैल मे वन मंत्री के वहां से यह कहते हुए फ़ाइल वापस कर दी गई कि इस जाँच मे ए.के गुप्ता का पक्ष नहीं सुना गया है। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि रिपोर्ट मे यह साफ़–साफ़ अंकित है कि जाँच अधिकारी द्वारा पांच बार ए.के गुप्ता को उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने को कहा गया था। जिस मे एक बार मौखिक, तीन बार whatsaap के माध्यम से व एक बार लिखित तौर पर नोटिस भेजा गया था, किन्तु वह उपस्थित नहीं हुआ, यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि पूर्व में भी कई मामलों मे न्यायालय ने भी whatsaap के माध्यम से भेजे नोटिस को मान्य माना है, अब अगर कोई साल भर तक जाँच अधिकारी के सम्मुख उपस्थित ही न हो तो क्या जाँच को साल भर ठंडे बस्ते मे डाल देना चाहिए, जिस से यह सवाल उठना लाज़मी है की कहीं यह सब पक्ष रखने के नाम पर गुप्ता को बचाने का कोई खेल तो नहीं ? क्योंकि जब जाँच रिपोर्ट में गुप्ता द्वारा की गई भारी अनियमितताएं सामने आने से पर इस मामले को अपने स्तर से जाँचने के बाद पी.सी.सी.एफ. व अपर मुख्य सचिव ने कार्यवाही के लिये अपनी सहमति दे दी तो अब क्यों इस मामले मे रियायत बरती जा रही है? 6 महीने तक किसी मामले को लटका कर राज्य सरकार किस मुंह से जीरो टाॅलरेन्स की बात करती है !

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