स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चमोली के रैणी गाँव मे 7 फरवरी को आई आपदा के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार सहित केंद्र सरकार से 25 जून तक जवाब पेश करने को कहा है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई।
मामले के अनुसार अधिवक्ता पी.सी.तिवारी ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि चमोली के रैणी गाँव की महिला गौरा देवी सहित अन्य महिलाओं ने वनों को बचाने के लिए सत्तर के दशक में एक अनूठी पहल की शुरुआत की थी।
जब ठेकेदार कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटवा रहा था तो इन महिलाओं ने पेड़ो पर चिपककर इसका विरोध किया । यहीं से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई।
याचिकाकर्ता का कहना है कि, यही क्षेत्र आज आपदा की मार झेल रहा है। सात फरवरी को आई आपदा में कई लोगो के परिवार उजड़ गए और कितने लोग कम्पनियो व सरकार की लापरवाही के कारण मौत के काल में समा गए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि, यह क्षेत्र प्रतिबंधित क्षेत्र है यहां नंदा देवी बायोस्फियर क्षेत्र भी घोषित है फिर सरकार ने यहां पर हाइड्रोपावर बनाने की अनुमति क्यों दी गयी है। जबकि पहले भी यह क्षेत्र सवेदनशील रहा है।
आपदा के दौरान राज्य के बडे बडे नेताओ और अधिकारियों ने यहां का दौरा किया लेकिन पीड़ितों को न तो मुआवजा दिया गया और न ही उनको न्याय मिला। जहाँ पर यह घटना हुई वहाँ पर किसी भी तरह का अर्ली अलार्मिंग सिस्टम नहीं लगा था, इस क्षेत्र में एवलांच को आने में 15 मिनट लगे थे ।
अलार्मिंग सिस्टम होता तो कई लोगो की जान बच सकती थी। याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में यह प्राथर्ना की है कि आपदा पीड़ितों को उचित मुआवजा दिलाया जाय। जिनका परिवार उजड़ गया है, न्यायालय अब सरकार और कम्पनी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करे क्योंकि यह आपदा सरकार और कम्पनियो की लापवाही के कारण हुआ था ।