उच्च न्यायालय, नैनीताल के विनियमितीकरण नियमावली, 2016 के आधार पर विनियमित सहायक प्राध्यापक डॉ हेमा मेहरा की पुनर्विचार याचिका खारिज की । जिसके चलते 176 सहायक प्राध्यापकों के विनियमितिकरण पर खतरे की तलवार लटक गई हैं।
उत्तराखण्ड शासन द्वारा विनियमितीकरण नियामवली 2016 के आधार लगभग 700 कर्मिको को विनियमित किया गया,जिनमें उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड में समूह ‘क’ के पदों में 30 दिसम्बर 2016 को 176 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को विनियमित किया गया ।
तत्पश्चात हिमांशु जोशी एवं अन्य द्वारा विनियमितीकरण नियामवली,2016 को उच्च न्यायालय, नैनिताल में चुनौती दी गई,जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की खंडपीठ द्वारा विनियमितीकरण नियमावली को निरस्त कर दिया। न्यायालय के निर्णय के अनुपालन में कार्मिक विभाग द्वारा दिनांक 07 जनवरी,2019 को संशोधित नियामवली,2018 बनाई गई,जिसमें विनियमितीकरण नियामवली के आधार पर विनियमित कर्मिको के पदों को रिक्त मानते हुए संगत सेवा नियमावली के आधार पर भरने के साथ -साथ विनियमित कार्मिकों को 10 नंबर वेटेज देने का प्राविधान किया गया।
संशोधित नियामवली को उच्च शिक्षा विभाग में 2016 नियामवली के आधार पर विनियमित किये गए 6 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स ने न्यायालय में हेमा मेहरा एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य में चुनौती दी गई, जिस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा 15 फरवरी,2019 को पारित निर्णय में संशोधित नियामवली,2018 को सही बताया था 2016 नियामवली के आधार पर विनियमित 176 अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर्स सहित सभी के विनियमितीकरण को नियामवली बनने के दिन यानी 14 दिसम्बर,2016 से ही खारिज होने का निर्णय पारित किया।
उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को शासन द्वारा न्याय विभाग को भेजा गया जिसपर न्याय विभाग द्वारा भी विनियमितीकरण को अवैध एवं शून्य बताते हुए विनियमितीकरण को खत्म करने की सलाह दी ।
डॉ हेमा मेहरा एवं अन्य द्वारा 15 फरवरी, 2019 के निर्णय के खिलाफ न्यायालय में पुनर्विचार याचिका फाइल की थी,जिसे न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की पीठ द्वारा निरस्त कर दिया गया है।
याचिका के निरस्त होते ही उच्च शिक्षा विभाग में 2016 की नियमावली के आधार पर नियमित कार्मिकों के विनियमितिकरण पर खतरे की तलवार लटक गई है। याचिका खारिज होने के बाद अब सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम पर सबकी नजरें टिकी है। याचिका में पारित निर्णय के अनुसार कार्मिकों का विनियमितिकरण नियमावली बनने की तिथि से ही खारिज माना जाएगा।