बड़ा खुलासा : आधा दर्जन आईएएस, पीसीएस और पुलिस अधिकारियों को हाकम सिंह ने बेची है कई सौ नाली जमीन

भर्ती घोटाले में गिरफ्तार हाकम सिंह ने उत्तराखंड के कई आईएएस पीसीएस और पुलिस अधिकारियों को हर की दून ,मोरी ,पुरोला आदि इलाकों में कई सौ नाली जमीन बेची हुई है।

कईयों को उसने सेब के बगीचे बेचे हैं। इन अधिकारियों ने कुछ नाली सरकारी जमीन खरीदने के बाद बाकी सिविल सोयम तथा वन विभाग की जमीनों पर बड़े स्तर पर कब्जा किया हुआ है।

वर्ष 2002 में उत्तरकाशी के एक चर्चित जिलाधिकारी के घर से कुक का काम करने वाले हाकम सिंह ने पावर का स्वाद 22 साल पहले ही चखना शुरू कर दिया था। 

उक्त जिलाधिकारी के हरिद्वार ट्रांसफर होने पर वह हाकम सिंह को भी हरिद्वार दे गया।

हरिद्वार में हाकम सिंह ने कई सियासी रसूखदार लोगों से अपने संपर्क बनाने शुरू कर दिए। इसके बाद ग्राम प्रधान और सिर्फ जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद सियासत में हाकम सिंह का अपना कद बढ़ता चला गया और उसने एक रिजार्ट बनाकर उसमें सचिवालय और अन्य सरकारी विभागों के अफसरों को बुलाना शुरू कर दिया।

मंत्री – विधायकों को रिजार्ट मे खातिरदारी कराने के बाद वह उनको अपने प्रभाव मे शामिल करता गया और नकल माफिया बन बैठा, जिसे बेरोजगार मजाक मे रोजगार पुरुष भी कहने लगे। 

कयी अधिकारियों ने अपने भाई,  भतीजो और सालों की नौकरियों मे इसकी सेवाएं ली हैं।  अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अलावा राज्य में पंतनगर विश्वविद्यालय तकनीकी विश्वविद्यालय और दूसरी परीक्षा एजेंसियों में धांधली की शिकायतों के तार भी हाकम सिंह की ही सर्किट से होकर गुजरते हैं।

वर्ष 2020-21 में हुई एक भर्ती में तो लगभग 80% अधिकारियों के ही रिश्तेदारों और बच्चों का ही सिलेक्शन हो पाया था। जितनी भी अधिकारी कर्मचारी इस भर्ती घोटाले में अब तक गिरफ्तार हुए हैं यह देखने में आया है कि उनकी अपनी भर्ती भी संदिग्ध रही है ऐसे में पिछली भर्तियों में भी धांधली होने के आरोप पुख्ता हो जाते हैं।

इस पूरी भर्ती में लगभग 80% धांधली हुई है लेकिन यह कहीं भी चर्चा का विषय नहीं बना।

इसके अलावा वर्ष 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी होने के चलते हाकम फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले भी से भी साफ बच निकला था।

तब भी विजिलेंस ने फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले में हाकम सिंह को अपने लपेटे में ले लिया था लेकिन तब पूर्व मुख्यमंत्री से अपने संबंधों के चलते वह बच निकला था।

यदि इसकी ठीक से जांच की जाए तो पंतनगर विश्वविद्यालय सहित दूसरी परीक्षा एजेंसियों द्वारा कराई गई भर्तियों में भी बड़े व्यापक स्तर पर घोटाला सामने आ सकता है। साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री कार्यालय की भूमिका भी साफ हो जाएगी।

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