पच्चीस हजार संक्रमितों की व्यवस्था का दावा करने वाली सरकार ने बॉर्डर पर ही प्रवासियों को क्वॉरेंटाइन करने में जताई असमर्थता
बॉर्डर पर ही प्रवासियों को क्वॉरेंटाइन रखने में सरकार असमर्थ फिर 25000 संक्रमित की व्यवस्था का दावा कितना सही !
कुछ दिन पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक चर्चित वीडियो जारी करते हुए कहा था कि यदि डेढ़ से दो लाख प्रवासी उत्तराखंड लौटे तो उनमें से 25000 लोग संक्रमित हो सकते हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि उनके पास 500 वेंटिलेटर और 25000 संक्रमित के इलाज की पर्याप्त व्यवस्था है, किंतु जब परसों हाईकोर्ट में बाहरी राज्यों के रेड जोन से आने वाले प्रवासियों को उत्तराखंड की सीमा पर ही क्वॉरेंटाइन करने के लिए निर्देश दिए तो सरकार ने हाथ खड़े कर दिए। और कहा कि सरकार के पास उनको बॉर्डर पर ठहराने खाने की व्यवस्था नहीं कर सकती।
शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा है कि वे हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे कि सरकार ऐसी स्थिति में नहीं है।
गौरतलब है कि कल कैबिनेट बैठक में हाईकोर्ट के दिशा निर्देश को लेकर चर्चा हुई और अंत में यह तय किया गया कि सरकार हाईकोर्ट के समक्ष अपनी असमर्थता जता देगी।
अहम सवाल यह है कि हरिद्वार तथा हल्द्वानी मे विशालकाय आश्रम और वेडिंग प्वाइंट से लेकर धार्मिक संस्थाओं के बड़े-बड़े आश्रय स्थल हैं। क्या सरकार उनसे बातचीत करके उन्हें राजी नहीं कर सकती !
गौरतलब है कि जब से प्रवासियों की घर वापसी हुई है तब से कुल संक्रमित लोगों में से लगभग 100% संक्रमित बाहर से आने वाले प्रवासी ही हैं।
स्क्रीनिंग के समय इनमें लक्षण नजर ना आने पर यह लोग गांव चले जाते हैं और जब कोई व्यक्ति संक्रमित निकलता है तो पता चलता है कि वह परिवहन के तमाम साधनों और अन्य स्थानों को संक्रमण के खतरे में डालता हुआ आ रहा है।
सीमाओं पर प्रवासियों को क्वॉरेंटाइन करने से सरकार ने भले ही हाथ खड़े कर दिए हैं, लेकिन इस तरह हाथ खड़े करने से कोरोना की महामारी कितना भयानक रूप ले सकती है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
पिछले दिनों प्रवासियों का सैंपल लेकर उनकी जांच रिपोर्ट आने से पहले ही उन्हें गांव भेज दिया गया था और जब वह संक्रमित निकले तो फिर उनकी ढूंढ खोज और ट्रैवल हिस्ट्री जुटाने का ड्रामा शुरु हो गया।
अधिक बेहतर यही होता थी ऐसे लोगों को बॉर्डर पर ही क्वॉरेंटाइन कर दिया जाता और जांच रिपोर्ट आने पर ही आगे भेजा जाता।