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कहीं रबर स्टैंप तो साबित नही होंगे नए मुख्यसचिव उत्पल कुमार!

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डबल इंजन की सरकार ने 1986 बैच के आइएएस अफ़सर उत्पल कुमार को अपना पहला मुख्य सचिव बनाकर साफ चेहरे की सरकार का संदेश देने कीं कोशिश है। इसके साथ ही निवर्तमान मुख्य सचिव रामास्वामी को सचिवालय से बाहर का रास्ता दिखा कर राजस्व परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने साफ छवि के कुमार के माध्यम से बेहतर संदेश दिया है।इसके साथ ही सीएम को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उत्पल कुमार सिर्फ मुखौटा न साबित हों! सही काम के रिजल्ट आने मे समय लगता है, किंतु संदेश के साथ काम भी दिखेगा तो ही संदेश मायने रखता है।
उत्तराखंड गठन के बाद से ही अधिकांश मुख्य सचिव एक प्रकार से सांकेतिक पद ही साबित हुये हैं।आर एस टोलिया को एन डी तिवारी ने साइड लाइन करके एम रामचंद्रन को सुपर सीएस बना दिया था।
एस के दास को भुवन चंद्र खंडूड़ी ने साइड लाइन करके मुंहबोले पुत्र प्रभात कुमार सारंगी को सभी शक्तियाँ दे दी थी। इसी तरह से राकेश शर्मा के मोह में विजय बहुगुणा ने तत्कालीन मुख्य सचिव  सुभाष कुमार को भी साइड लाइन कर दिया था।
 विजय बहुगुणा हटे तो साफ सरकार का संदेश देने के लिए हरीश रावत दिल्ली से एम नागराजन को मुख्य सचिव बनाकर लाए किंतु यह सभी को पता था नागराजन केवल सरकार का मुखौटा हैं।  संदेश देने की यह कवायद ज्यादा दिन तक ही नहीं रही। जल्दी ही राकेश शर्मा को फिर से फ्रंटफुट पर ले आया गया। इनके सामने शत्रुघ्न सिंह की भी एक नहीं चली। वर्तमान सरकार में एम रामास्वामी की छवि साफ नहीं थी, लेकिन मुख्य सचिव के पद पर वह इतने ढीले थे कि यह ढीला ढाला मुखौटा सरकार के चेहरे पर फिट नहीं बैठता था। पर्दे के पीछे से अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ही सारा कामकाज संभाल रहे थे। जब सरकार की छवि खराब होने लगी तो आनन-फानन में वर्तमान सरकार ने महज एक दिन पहले उत्पल कुमार सिंह को मुख्य सचिव बनाने का प्रस्ताव रखते हुए उत्पल कुमार सिंह को उत्तराखंड के लिए अवमुक्त करने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा और भारत सरकार ने भी अगले ही दिन उत्पल कुमार को कार्यमुक्त कर दिया।
हरीश रावत द्वारा राकेश शर्मा को मुख्य सचिव बनाने के दौरान ही मुख्य सचिव को पावर में देखा गया । इसके अलावा मुख्यमंत्रियों द्वारा सचिव मुख्यमंत्री को ही सत्ता का केंद्र बनाने का चलन रहा है । मुख्य सचिव एम रामा स्वामी को समय पूर्व हटाने के पीछे एक और कारण यह सामने आया है कि कई मौक़ों पर उन्होंने ओम् प्रकाश की हाँ में हां मिलाने से इंकार कर दिया। रामास्वामी को यह ग़लती आज मुख्य सचिव की कुर्सी समय से पूर्व गँवाकर चुकानी पड़ी है। रामास्वामी की विदाई और उत्पल कुमार की ताजपोशी के बावजूद अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह की एक मात्र पसंद बने रहेंगे इसकी पूर्ण सम्भावना है।
उत्पल कुमार सिंह अभी तक केंद्र सरकार में अपर सचिव कृषि के पद पर तैनात थे। उत्तराखंड में उन्होंने गृह से लेकर PWD ,पर्यटन जैसे आधा दर्जन से अधिक महकमे जिम्मेदारी से संभाले हैं और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री भी रहे हैं। उत्पल कुमार की छवि साफ़ सुथरी है और वह केवल काम से काम रखने वाले अफसर हैं। ऐसे में संभव है कि वह मुख्य भूमिका में न दिखें। जिस तरह से रामास्वामी अब तक नागरिक उड्डयन, निवेश आयुक्त सरीखे आधे दर्जन महकमों को संभाल रहे थे, ज्यादा संभावना इस बात की है कि उत्पल कुमार सिंह को सिर्फ मुख्य सचिव का ही पद दिया जाए। ऐसे में उनकी भूमिका सिर्फ मीटिंग की अध्यक्षता करने और केंद्र तथा राज्य के बीच पत्राचार के आदान-प्रदान में एक डाकिए तक सीमित रह जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो साफ सुथरी सरकार देने का संदेश ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएगा। यदि उत्पल कुमार सिंह को जीरो टॉलरेंस वाली सरकार की अपेक्षा के अनुरूप वन, खनन PWD, जैसे महत्व पदभार दिए जाते हैं तो उससे सरकार की छवि तो निखरेगी  किंतु ऐसे में अधिक संभावना इस बात की है कि अधिकांश उल्टे सीधे काम लटक सकते हैं।
 उत्पल कुमार सिंह का केंद्र में बड़ा एक्सपोजर रहा है। इस लिहाज से यह मुश्किल लगता है कि वह नियमों से अधिक विचलन अथवा शिथिलीकरण की प्रक्रिया में सहज रह पाएंगे। बहरहाल सरकार ने बीच कार्यकाल में से ढीले ढाले रामास्वामी को हटाकर उत्पल कुमार सिंह को नया मुख्य सचिव बनाकर एक स्वस्थ और साफ छवि की सरकार देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता फिर से जाहिर तो कर ही दी है। देखना यह है कि उनका यह संकल्प कब तक सिद्ध होता है!

स्वार्थ सिद्ध होते ही मुख्य सचिव को टीएसआर ने किया दरकिनार: नेगी

 

 

जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि ढैंचा बीज घोटाले के मुख्य आरोपी सूबे के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इतने महीने तक सुस्त एवं जनसरोकार के मुद्दे पर दिलचस्पी न लेने वाले मुख्य सचिव को लगभग 6 महीना इसलिए झेला कि इन्होंने ही (टीएसआर) पर बड़ी कृपा दृष्टि की थी। मुख्य सचिव ने ढैंचा बीज घोटाले के मामले में सदन के निर्देश पर Action Taken Report (कार्यवाही ज्ञापन) में मुख्यमन्त्री को बिल्कुल पाक-साफ बताकर क्लीन चिट दी थी, जबकि त्रिपाठी जॉच आयोग की रिपोर्ट में त्रिवेन्द्र सिंह रावत को भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था, लेकिन क्लीनचिट मिलने के कुछ माह बाद ही एस0 रामास्वामी (मुख्य सचिव) की भेंट चढ़ा दी गयी।
नेगी ने कहा कि जिस अधिकारी को 5-6 महीने पहले ही पद से हटा देना चाहिए था उस अधिकारी को इतने लम्बे समय तक मुख्य सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर बनाये रखने का सीधा-सीधा मतलब अपना उल्लू सीधा करना था। उक्त सुस्त एवं जनसरोकार के मुद्दे पर संवेदनहीन अधिकारी की वजह से प्रदेश को गति नहीं मिल पायी, जिसका मुख्य कारण त्रिवेन्द्र सिंह रावत को अपना स्वार्थ सिद्व करना था।

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