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फिर निकला लाइब्रेरी का भूत

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हरिद्वार में नगर विकास मंत्री रहते हुए उनके द्वारा बनाई गई 28 लाख रुपए की लागत से बनाई गई लाइब्रेरी में घपले-घोटालों को लेकर मुकदमे दर्ज होने से मंत्री जी की मुसीबत बढऩी तय

कुमार दुष्यंत/हरिद्वार

हरिद्वार में नगर विकास मंत्री रहते हुए मदन कौशिक द्वारा 2008-09 में विधायक निधि से बनवाई गयी लाइब्रेरियों का भूत एक बार फिर जाग गया है। उच्च न्यायालय के आदेश पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। मदन कौशिक इसमें आरोपी नहीं हैं, लेकिन इसके छींटे उन पर भी पडऩे तय हैं।
वर्ष 2008-09 में तत्कालीन नगर विकास मंत्री मदन कौशिक द्वारा बनवाई गई लाइब्रेरियों का भूत एक बार फिर से जाग गया है। 28 लाख रुपए की लागत से बनी इन लाइब्रेरियों के मामले में कोर्ट ने धन का दुरुपयोग व गोलमाल मानते हुए इन लाइब्रेरियों को बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने एवं रकम वसूली के निर्देश दिये हैं। जिसके बाद यह पूरा मामला फिर गर्मा गया है।
मदन कौशिक की विधायक निधि से हरिद्वार में करीब दर्जनभर स्थानों पर यह लाइब्रेरियां बनना बताया गया था, लेकिन बाद में इन स्थानों पर मंदिर, स्कूल व बारातघर पाए गये। यह मामला 2010 में पहली बार तब सामने आया, जब लोकायुक्त ने एक शिकायत पर जांच अधिकारी मानसिंह रावत के नेतृत्व में दो सदस्यीय जांच टीम गठित कर इन आरोपों की जांच कराई। जांच में लाइब्रेरियां नहीं मिलने पर लोकायुक्त ने इस मामले में संबंधित विभागों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति शासन से की थी, लेकिन न तो तब की निशंक सरकार ने इस पर कोई एक्शन लिया व न ही बाद की कांग्रेस सरकार ने। जिसके बाद समाजसेवी व आरटीआई एक्टिविस्ट दिनेश जोशी इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय पहुंच गये। जहां तीन साल की सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए जिलाधिकारी को संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ प्रभावी धाराओं में मुकदमे दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।
हालांकि इस मामले में अभी सिर्फ आरईएस के तत्कालीन सहायक अभियंता अरविंद मोहन गर्ग के ही खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गयी है। यह अभियंता फिलवक्त उत्तरकाशी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इस पूरे मामले में यह अकेले ही दोषी हैं, ऐसा नहीं लगता। विधायक निधि एक पूरी प्रकिया के तहत खर्च की जाती है। काम की संस्तुति के बाद धन मुख्य विकास अधिकारी के अधीन ग्राम्य विकास अभिकरण को स्थानांतरित होता है, जो काम का स्थलीय निरिक्षण कर किये गये काम के सापेक्ष कार्यदायी संस्था को किश्तों में पैसा जारी करता है, लेकिन इस मामले में यह पूरी प्रकिया ताक पर रख दी गयी लगती है। विकास विभाग ने न केवल बिना काम के स्थलीय निरिक्षण के ही पैसे जारी किए, बल्कि नियम विरुद्घ ऐसे स्थानों पर भी लाइब्रेरियों को मंजूरी दी, जो निजी थे। जांच में यह भी पाया गया कि लाइब्रेरियों वाले कुछ स्थानों पर निजी भवन थे तो कुछ पर बच्चे खेल रहे थे। मंदिर, स्कूल व बारातघर वाले स्थानों पर भी जांच टीम को कोई पठनीय सामग्री नहीं मिली।
रोचक बात यह भी है कि कोर्ट के आदेश के बाद जब जिलाधिकारी ने इन लाइब्रेरियों को बनाने वाले विभाग आरईएस को इन लाइब्रेरियों की रिपोर्ट देने के निर्देश दिये तो आरईएस के अधिकारियों को भी यह लाइब्रेरियां नहीं मिली। इन लाइब्रेरियों के निर्माण के बाद नगर निगम को इनका अनुरक्षण करना था, लेकिन नगर निगम भी अभी इन लाइब्रेरियों को ढूंढ रहा है। जिससे लगता है कि लाइब्रेरियों के निर्माण के नाम पर विधायक निधि का यह धन खुर्द-बुर्द कर दिया गया। अब उच्च न्यायालय के दखल पर शुरू हुई कार्रवाई के बाद इस निधि का गोलमाल करने वालों में खलबली है। फिलहाल इस पूरे मामले में पैसा जारी करने वाले विकास विभाग व कार्यदायी ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के अधिकारी ही दोषियों के रूप में चिन्हित हैं, लेकिन मामला विधायक निधि के दुरुपयोग का है, इसलिए तत्कालीन एवं मौजूदा मंत्री व हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

इन स्थानों पर बनी बताई गई हैं लाइब्रेरियां

  1. कुंजगली खडख़ड़ी

  2.  राही मोटल के पीछे

  3. टंकी नं. ६

  4.  पांडे वाली ज्वालापुर

  5.  पूर्वी नाथ नगर

  6. दयानन्द नगरी

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  7. धीरवाली ज्वालापुर

  8. शिव विहार

  9. पूजा नमकीन वाली गली

  10. शिव लोक

  11. बाल्मीकि बस्ती

कोई गोलमाल नहीं हुआ: मदन कौशिक

”यह सब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए किया जा रहा है। कहीं कोई गोलमाल नहीं हुआ। पूरी पारदर्शिता से काम हुआ है। सभी लाइब्रेरियां अपनी जगह मौजूद हैं।”

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