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ये आर्मी का कमांडो कोर्स नहीं, ग्रामीणों के रोजमर्रा की दिनचर्या है!

September 15, 2017
in पर्वतजन
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गिरीश गैरोला/ उत्तरकाशी//

कौन सुध लेगा-अस्सी गंगा घाटी के 7 गांवों की।

स्कूल जाने के लिए जान हथेली पर।

लकड़ियों की बल्ली से करते है पुल पार।

रात के अंधेरे मे कुर्सी पर बांध कर 5 किमी पैदल लेकर आए प्रसूता महिला  को।

108 सेवा ने खड़े किए हाथ।

मुख्यालय से लगे गाजोली भंकोली गांव का मामला

अपने नौनिहालों को शिक्षित करने के लिए गाजोली गांव के छात्र–छात्राओं को रोज एक ऐसे पुल से गुजरना पड़ता है कि बस कोई सड़ी हुई लकड़ी कहीं से टूटी तो यहा इंसान की भी हड्डी टूटना तय है।अस्पताल जाने के लिए चारपाई  का सहारा और उसे पैदल मार्ग पर ढोने  के लिए चार व्यक्ति।

ये कहानी हर रोज  की है। कभी कोई बीमार तो कभी किसी प्रसूता को इन्ही हालत से गुजरना इनकी तकदीर का हिस्सा बन गया है।

भले ही देश मे बालिका को शिक्षित कर आगे बढ़ाने का संकल्प विज्ञापनों मे खूब  लिया जाता है किन्तु इस शिक्षा के लिए जान  हथेली पर रखकर ही इन्हे  आगे बढना है। शिक्षा के लिए जान जोखिम मे डालने वाली इन बालिकाओं के दर्द देखने जब हमारी टीम गांव मे पहुंची तो लगा किसी दूसरी दुनिया मे आ गए हों। पैदल जाते समय कपड़े झाड़ियों मे अटक कर फटे तो पैर मे जगह – जगह जोंक  चिपक गयी और शरीर से खून चूसना सुरू कर दिया।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 20 से 25 किमी दूर अस्सी गंगा घाटी के  इन गांव तक पहुंचने के लिए हालांकि गजोली तक सड़क बनी हुई है किन्तु ज़्यादातर ये सड़क बंद ही रहती है।  किसी तरह हिचकोले खाकर संगम चट्टी तक ही टैक्सी कमांडर से पहुंचा सकता है।

इलाके के इन 7 गांवों के लिए एक ही इंटर कॉलेज भंकोली मे है।गाजोली, अगोड़ा, नौगव , दनदालका , ढासड़ा और भंकोली के गाव से छात्र इस स्कूल मे पढ़ने आते हैं , जबकि सेकु गांव के छात्र गंगोरी इंटर कॉलेज पहुंचते हैं।

गाजोली मे हाइ स्कूल तो है किन्तु आगे की पढ़ाई के लिए उन्हे भी भंकोली इंटर कॉलेज मे ही जाना होता है। गाजोली से भंकोली की तरफ घ्या गाड पर बना हुआ पुल वर्ष 2013 की आपदा मे बह गया था। इसके साथ ही इलाके के 6 अन्य पुल भी बह गए थे। इसमे से केवल नौगाव-भंकोली पैदल पुल का ही निर्माण अभी तक किया जा सका है। बाकी सभी पुलों पर  पर ऐसी ही अस्थायी व्यवस्था चल रही है।

पूर्व जिला पंचायत सदस्य कमल सिंह रावत ने बताया कि संगम चट्टी को अगोड़ा और डोडी ताल को जोड़ने वाले दो पुल, अगोड़ा–सिलयान ,गाजोली–भंकोली , भंकोई – ढासड़ा, और सेकु गांव मे अभी भी आपदा कि भेंट चढ़े पुलों का पुनः निर्माण नहीं हो सका है।गांव के ही शंकर नैथानी, चन्द्र मोहन खंडूडी , कमलेश्वर खंडूडी , और हरीश खंडूडी ने बताया कि आपदा मे बहे इन पुलों को श्रम दान से किसी तरह से आने-जाने लायक बनाया गया है। भंकोली मे 11 वीं मे पढ़ने वाले हरीश खंडूडी ने बताया कि घ्या गाड़  पर गजोली और भंकोली के बीच बना ये पैदल पुल आपदा मे आधा बह गया था।

अब जिस पर डाली गयी लकड़ियां भी अब कई जगह से सड़ गयी हैं और स्कूल आते जाते समय हाथ पकड़-पकड़ कर इसे पार करना पड़ता है किन्तु कभी भी हादसा होने का खतरा बन रहता है।

इंटर कॉलेज मे भी 7 प्रवक्ताओं के पदों के सापेक्ष केवल तीन ही प्रवक्ता कम कर रहे हैं जो शिक्षक ट्रान्सफर हुए उनके बदले कोई नहीं आया।लिहाजा 198 छात्रों का भविष्य धर में है।

खासकर विज्ञान वर्ग के छात्रों के लिए बिना शिक्षकों के अपनी पढ़ाई करना  मुश्किल है।

जान पर बन आयी प्रसूता चन्द्रकला की

गुरुवार रात भंकोली की चन्द्रकला को प्रसव पीड़ा हुई तो 108 एंबुलेंस को फोन किया मगर वे नहीं आए। मजबूर ग्रामीणों ने रात 12;30 पर डंडी से उसे 5 किमी दूर संगम चट्टी तक पहुंचाया।

किस्मत अच्छी थी कि गांव का चालक रात के लिए गांव मे आया था और गाड़ी वहीं खड़ी मिली। लिहाजा  संगमचट्टी से उस टैक्सी से उसे जिला अस्पताल पहुंचाया गया।

सुबह 3 : 30 पर महिला जिला महिला अस्पताल मे पहुची और 15 मिनट बाद उसने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया।

आज चन्द्रकला जच्चे – बच्चे के साथ सकुशल है तो इसे किस्मत का ही खेल माना जा सकता  है वरना परिस्थिति और बदहाल सड़क मार्ग ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी।


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