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यूपी सरकार जहां वीआईपी कल्चर के प्रतीक इस नाम को समाप्त करना चाहती हैं। वहीं कुछ राजनीतिक दल व संगठन इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं
कुमार दुष्यंत
यूपी के सिंचाई मंत्री का हरिद्वार में स्थित सिंचाई विभाग की एक संपत्ति का नामकरण का फैसला यूपी से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक जलजले का कारण बन गया है। केंद्र सरकार के वीआईपी कल्चर समाप्त करने के संकल्प के तहत पिछले दिनों यूपी के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने हरिद्वार में स्थित वीआईपी घाट का नाम बदलकर शंकराचार्य घाट कर दिया था। नामकरण के साथ ही शंकराचार्य जयंती के अवसर पर घाट पर इस आशय का शिलापट भी लगा दिया गया था, लेकिन इस घाट का नाम बदलने का समाचार जैसे ही सुर्खियां बना उत्तराखंड, यूपी से लेकर दिल्ली तक कुछ राजनीतिक दल व संगठन इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी, भारतीय किसान यूनियन व चौ. चरण सिंह विचार मंच जैसे संगठन इस मामले को लेकर आंदोलनरत हैं। वह सड़कों पर उतरकर यूपी सरकार व नाम बदलने वाले उसके मंत्री धर्मपाल सिंह के पुतले फूंक रहे हैं। विवाद का कारण इस घाट से पूर्व प्रधानमंत्री व किसान नेता स्व. चौधरी चरण सिंह का नाम जुड़ा होना है।
हरिद्वार में हरकी पैड़ी के ठीक सामने सिथत वीआईपी घाट सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश की संपत्ति है। कुंभ-अद्र्ध कुंभ व अन्य मेलों-पर्वों के अवसरों पर विशिष्ट एवं अतिविशिष्ट लोगों के बाधारहित स्नान के लिए इस घाट का निर्माण किया गया था, क्योंकि घाट बनाया ही वीआईपी लोगों के लिए गया था। इसलिए इसे इसी नाम से जाना जाने लगा। इस घाट के ठीक सामने मुख्य गंगा की धारा पर भीमगोड़ा बैराज है। यह बैराज भी अभी यूपी के ही नियंत्रण में है। वर्ष 2004 में वीआईपी घाट पर हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक प्रस्ताव के द्वारा भीमगोड़ा बैराज का नाम चौ. चरण सिंह बैराज कर दिया था। तब से बैराज के साथ-साथ वीआईपी घाट को भी इस नाम से पुकारा जाने लगा। हालांकि औपचारिक तौर पर इस घाट का नाम वीआईपी घाट ही है। अब जब सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने केंद्र की वीआईपी कल्चर समाप्त करने की नीति के तहत इस घाट का नाम भी वीआईपी घाट से बदलकर शंकराचार्य घाट किया तो बैराज का नाम चौ. चरण सिंह बैराज करने वाली समाजवादी पार्टी सहित लोकदल व किसानों से जुड़े संगठन उप्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ लामबंद हो गये हैं। उनका मानना है कि घाट से चौधरी चरण सिंह का
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नाम हटाना स्व. प्रधानमंत्री व किसानों के मसीहा रहे चौधरी चरण सिंह का अपमान है। किसान संगठनों के साथ-साथ सपा व रालोद के जुड़ जाने से मामला राजनीतिक रंग लेने लगा है। रालोद केंद्र में भाजपा का सहयोगी दल है और उसके चौधरी चरण सिंह के प्रभाव क्षेत्र से चुनकर आने वाले जल संसाधन मंत्री संजीव बालियान भी यूपी के इस फैसले के खिलाफ हैं।
फिलहाल इस मामले को लेकर उत्तराखंड से यूपी तक धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं। घाट का नाम शंकराचार्य घाट करने वाले यूपी के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह अपने फैसले को सही मानते हुए उस पर डटे हुए हैं। यदि यह मामला जल्द नहीं सुलटा तो इसका असर केंद्र सरकार व रालोद के रिश्तों पर भी पडऩा तय है। खास है वीआईपी घाट
हरकी पैड़ी के ठीक सामने गंगा व हाइवे के बीच बने हुए वीआईपी घाट का निर्माण 1981 में वीआईपी लोगों को नहलाने के लिए किया गया था। इससे पूर्व इस क्षेत्र को लालजी वाला पार्क के नाम से जाना जाता था। हरा-भरा व फलदार पेड़ों से ढका हुआ यह क्षेत्र उस समय फिल्म निर्माताओं को शूटिंग के लिए बहुत भाता था।
1998 में इस घाट को ओर आकर्षक बनाया गया। जिसके बाद यहां बालीवुड के सीरियल्स की शूटिंग भी होने लगी। गंगा की लहरें, गंवार, लूटमार, उधार की जिंदगी, अर्जुन पंडित जैसी कई फिल्मों की शूटिंग के अलावा अनेक रीजनल फिल्मों का फिल्मांकन वीआईपी घाट पर हुआ है। शासन के बड़े जलसे व टीवी चैनल्स की डिबेट-वार्ताएं भी इसी घाट पर होती रही हैं। आमतौर पर आम लोगों के लिए बंद रहने वाले वीआईपी घाट पर प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरे के अवसर पर लगने वाले किसान कुंभ के दौरान सारी व्यवस्थाओं को धता बताते हुए भारतीय किसान यूनियन के लोग कब्जा कर लेते हैं। वीआईपी घाट पर विवाद नहीं: धर्मपाल सिंह
केंद्र व यूपी सरकार के संकल्प के तहत वीआईपी घाट का नाम बदलकर शंकराचार्य घाट रखा गया है। चौधरी चरणसिंह का नाम बैराज से जुड़ा है। वह ज्यों का त्यों है। वीआईपी घाट का नाम कभी चौधरी चरणसिंह घाट नहीं रहा। इस पर विवाद वो लोग कर रहे हैं, जिन्हें चुनावों में जनता ने नकार दिया।