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हरिद्वार के ज्ञानगोदड़ी गुरुद्वारा पर एक्सक्लूसिव खुलासा

in पर्वतजन
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हरिद्वार में कभी नहीं रहा ज्ञान गोदडी गुरुद्वारा!
हरकीपैडी पर दुकान में था गुरुद्वारा।

कुमार दुष्यंत//

हरिद्वार। ज्ञानगोदडी गुरुद्वारे के विवाद को निपटाने के लिए सरकार द्वारा गठित कमेटी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।मामला संवेदनशील व सिखों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा होने के कारण समिति इसका तथ्यात्मक हल चाहती है।लेकिन अभिलेखों में कहीं भी ज्ञानगोदडी गुरुद्वारे का जिक्र नहीं मिल रहा।समिति के पदेन सचिव जिलाधिकारी को अभिलेखों की पड़ताल में जो गुरुद्वारा मिला है।उसे भी कभी ज्ञानगोदडी के नाम से नहीं जाना गया।

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उत्तराखंड राज्य के गठन से पूर्व हरिद्वार में ज्ञानगोदडी गुरुद्वारे की मांग कभी नहीं उठी।राज्य गठन के बाद जब सिखों के संगठन अस्तित्व में आए तबसे हरकीपैडी पर  गुरुद्वारे को जीवंत किये जाने की मांग उठने लगी।बाद में इसके साथ ज्ञानगोदडी नाम भी जोड़ दिया गया।हकीकत यह है धर्मनगरी में ज्ञानगोदडी के नाम का कभी कोई गुरुद्वारा नहीं रहा ।हरकीपैडी पर रामप्यारी देवी के जिस गुरुद्वारे के आधार पर ज्ञानगोदडी गुरुद्वारे की मांग की जा रही है।वह भी वास्तव में कभी सिख मान्यताओं का गुरुद्वारा नहीं रहा।खालसा मान्यताओं के अनुसार गुरुद्वारा वह होता है जहां गुरुग्रंथ साहब हों व वहां उसका नियमित पाठ होता हो।हरकीपैडी के गुरुद्वारे पर गुरुग्रंथ साहब जरूर थे।लेकिन क्योंकि एक दुकान में बने हुए इस मंदिरनुमा गुरुद्वारे का संचालन करने वाली रामप्यारी देवी ब्राह्मणी थी।इसलिए यहां गुरुग्रंथ साहब का पाठ नहीं होता था।हरकीपैडी आने वाले सिख श्रद्धालु इस मंदिरनुमा गुरुद्वारे में रखे गुरुग्रंथ साहब के आगे शीष नवाकर भेंट चढाते थे।जिससे रामप्यारी देवी का गुजारा चलता था।  यह गुरुद्वारा हरकीपैडी के निकट होने के कारण यहां श्रद्धालुओं का अधिक आना-जाना रहता था।जिसके कारण गऊघाट के निकट स्थित दूसरे  गुरुद्वारे के संचालक से रामप्यारी देवी का विवाद रहता था।इसी विवाद के चलते एक दिन गुरुग्रंथ साहब को रामप्यारी देवी के गुरुद्वारे से उठाकर गऊघाट स्थित गुरुद्वारे पर रख दिया गया था।पुराने लोग बताते हैं कि इस घटना के बाद से ही रामप्यारी देवी भी लापता हो गयी। इस घटना के बाद से राज्य गठन होने के बत्तीस वर्षों तक कभी इस गुरुद्वारे की सुध नहीं ली गयी।यहां तक की इस स्थल पर निगम द्वारा विकसित किये गये जाहन्वी मार्केट में इस गुरुद्वारे के नाम पर दो दुकानें खाली पड़ी रही।दस साल तक जब इन दुकानों पर किसी ने दावेदारी नहीं की तो पालिका ने इन्हें नीलाम करा दिया।

रामप्यारी देवी के गुरुद्वारे के अलावा भी उस वक्त तीन ओर गुरुद्वारे थे।एक ललतारों पुल के निकट गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा दूसरा अपररोड पर वृंदावन धर्मशाला के सामने सिंधी गुरुद्वारा व तीसरा नानकबाडा।सिंधी गुरुद्वारा भी रामप्यारी गुरुद्वारे की ही तरह एक दुकान में था।यहां भी गुरुग्रंथ साहब थे लेकिन प्रकाश नहीं होता था।नानकबाडे में क्योंकि गुरुनानक प्रतिमा रुप में हैं इसलिए वहां  गुरुग्रंथ साहब  रखे ही नहीं गये।सिख मान्यताओं का जीवंत गुरुद्वारा केवल ललतारों पुल स्थित गुरुद्वारा रहा है।जहां गुरुग्रंथ साहब भी हैं व उनका नियमित पाठ भी होता है।लंगर, कडा-प्रसाद भी यहां बांटा जाता है।                         हरकीपैडी पर गुरुद्वारे के लिए पर्याप्त स्थान न होने के कारण शासकीय समिति इस विकल्प पर भी विचार कर रही है कि सिखों की भावनाओं का सम्मान करते हुए हरकीपैडी पर निशान साहिब के लिए स्थान दिया जाए व ललतारों पुल स्थित गुरुद्वारे को सिखों की भावनाओं के अनुरुप ज्ञानगोदडी गुरुद्वारे के रुप में स्थापित किया जाए।

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