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एफआरआई: लैब मे प्रयोग करते रह गए वैज्ञानिक। लैंड मे सूख गए सैकड़ों पेड़

May 17, 2018
in पर्वतजन
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कुलदीप एस. राणा
देहरादून।
पेड़ों की कब्रगाह बन रहा एफआरआई 
पेड़ों एवम वनस्पतियों के संरक्षण हेतु शोध कार्य के लिए विश्व मे अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाला देहरादून स्थित एफआरआई (फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट) ही अब पेड़ों की कब्रगाह बनता जा रहा है।
छानबीन करने पर पता चला कि कई वर्षों से न तो कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव किया गया और न ही बीमार वृक्षों की सुध लेना जरूरी समझा गया। मुख्य बिल्डिंग के ही चारों ओर चक्कर लगाने से लगभग  80 से 100  की तादाद में तो सूखे एवं बीमार वृक्ष बिना खोजे ही दिखायी देते है।
 ब्रिटिश काल मे लगाए गए यहां अधिकांश पेड़ एफआरआई की लापरवाहियों के कारण कहीं सूख रहे हैं तो कहीं वृद्ध होकर आंधी के  हल्के थपेड़ों मात्र से ही जड़ से उखड़-उखड़ कर गिर रहे हैं। आजकल एफआरआई में जहां-तहां यह नजारा देखने को मिल रहा है। अब ये पेड़ एक दो दिन में तो सूखे या बीमार नही हुए होंगे ।
जाहिर है कि अगर इन पेड़ों के संरक्षण की तरफ जरा भी ध्यान दिया जाता तो इन्हें सूखने और बीमार होने से बचाया जा सकता था। कीटनाशकों का छिड़काव करने मात्र से कीटों से इनकी रक्षा की जा सकती थी। एफआरआई में पेड़ों के बचाव और संरक्षण के लिए एक अलग से विभाग भी है, जिसमे अनेक वैज्ञानिक शोध कार्य करते हैं।
लगभग 500 हेक्टेयर में फैले एफआरआई  में  हजारों  की संख्या में  विभिन्न प्रजातियों के वृक्ष हैं, जिन्हें ब्रिटिश काल मे रोपा गया था।
एफआरआई में कार्य करने वाले कुछ कर्मचारियों ने बताया कि  वरिष्ठ अधिकारी  कैंपस में  ओवर एज  हो चुके पेड़ों की कटाई छंटाई व बीमार वृक्षों के उचित संरक्षण और इलाज को लेकर  बिल्कुल भी गंभीरता नहीं दिखाते हैं।
सूख चुके पेड़ों को नियमानुसार कटान व बीमार पेड़ों के उचित उपचार का व दवाइयों के छिड़काव को लेकर उच्च अधिकारियों को  बार बार बताने के बावजूद उनके कान में जूं तक नहीं रेंगती।
इस विषय पर एफआरआई की महानिदेशक डाॅ. सविता का कहना है,-” हमारे पास एक ऐसी मशीन है जिससे पेड़ों पर लगाने से पता लगाया जाता है कि कोई पेड़ भीतर से कितना खोखला हो गया है। इस मशीन की मदद से वैज्ञानिक इस प्रकार के  पेड़ों का सर्वेक्षण कर रहे हैं और समय-समय पर हम इन पेड़ों को निकालते भी रहते है।”
अब सवाल यह उठता है कि जब एफआरआई के पास सारे संसाधन उपलब्ध है तो पेड़ गंभीर रोग की स्थिति में क्यों पहुंच रहे हैं ?

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