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दलित वोट बैंक के लिए विधायक जी की रविदास कथा

May 24, 2018
in पर्वतजन
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डबल इंजन के एक और विधायक का जबर्दस्त कारनामा

मन चंगा तो कठौती में गंगा, का दुनिया को भक्ति का सूत्रवाक्य बताने वाले संत रविदास ने जीवनभर कर्म को ही प्रधानता दी। रविदास भारतवर्ष के ऐसे चर्मकार थे, जो मन से ईश्वर की आराधना करते थे और उनकी आराधना को ईश्वर ने साक्षात रूप से सुना और प्रतिफल भी दिया।
सैकड़ों वर्ष पहले रविदास द्वारा कहे गए ये शब्द आज भी प्रासंगिक हैं, किंतु लोगों ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए रविदास को भी राजनीति का माध्यम बना लिया है। ज्वालापुर के भाजपा विधायक सुरेश राठौर ने अन्य विधायकों की भांति विधायक के रूप में शपथ लेते हुए कहा था कि वे जाति, धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेंगे, किंतु अनुसूचित जाति की सुरक्षित विधानसभा सीट से जीतकर आए राठौर अब उस शपथ को इसलिए याद नहीं रखना चाहते, ताकि अपनी सुरक्षित सीट को आगे भी सुरक्षित रखा जा सके। सुरेश राठौर 25, 26 और 27 मई को देहरादून के वैंकटेश्वर हॉल में श्री रविदास कथा सुनाएंगे।


सुरेश राठौर की यह तैयारी तब की है, जब केंद्र की भाजपा सरकार चार वर्ष के कार्यकाल पर विभिन्न आयोजन कर रही है। जाहिर है मतदाताओं के बीच जाकर मोदी महिमा के लिए रविदास कथा का यहां दूसरा माध्यम तैयार किया गया है। इस कथा कार्यक्रम के लिए विधायक सुरेश राठौर ने जो प्रचार सामग्री में ‘तोही मोही मोही तोही अंतर कैसा’ भी लिखा है। अर्थात तुममें मैं हूं, मुझमें तुम हो तो अंतर कैसा। जब सुरेश राठौर को सूरदास का कहा यह वाकया भी याद है कि तुझमें और मुझमें कोई अंतर नहीं है तो इस कथा कार्यक्रम की बजाय सुरेश राठौर को ज्वालापुर विधानसभा के वे हजारों हजार गरीब, दलित, पिछड़े क्यों नहीं दिखाई देते, जो साक्षात रूप से उनके सामने ईश्वर का रूप हैं।
जिस विधायक को विधानसभा के भीतर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, भूमिहीनों के लिए लडऩा चाहिए था, जिसे इन लोगों की दरिद्रता को दूर करने के लिए दिन-रात एक कर देना चाहिए था, वह विधायक गरीबों के लिए काम करने के बजाय जब रविदास कथा सुनाने लगे तो समझना कठिन नहीं कि विधायक राठौर की असली मंशा क्या है।
तीन दिन तक इस कथा के आयोजन की बजाय यदि सुरेश राठौर अपनी विधानसभा के उन्हीं रविदासों के बीच जाकर पैदल घूमते तो उन्हें संत रविदास द्वारा कहे गए शब्दों को वास्तव में धरातल पर उतारने का सबसे बेहतर अवसर मिल जाता, किंतु सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए और टाइमपास की राजनीति के नए तरीके ने सुरेश राठौर को उन्हीं लोगों की लाइन में खड़ा कर दिया है जो सिर्फ भाषणों में गरीबों के लिए लड़ते हैं।


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