स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डी-नोटिफाई करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव जे.सुहाग व्यक्तिगत रूप से पेश हुए । न्यायालय ने केंद्र सरकार और जैव विविध बोर्ड से पूछा है कि पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे है। साथ ही न्यायालय ने यह भी पूछा है कि, क्या वहां पर प्रस्तावित एयरपोर्ट का विस्तार अन्य जगहों की तरफ किया जा सकता है ?
आज उपस्थिति के दौरान मुख्य न्यायाधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सुहाग से यह भी पूछा कि, जो संस्थान वन्यजीवों के संरक्षण में लगे है वो ऐसा निर्णय कैसे ले सकते है ?
उन्हें वन्यजीवों की देखभाल करनी चाहिए।मामले के अनुसार देहरादून निवासी रेनू पाल ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि, 24 नवम्बर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने के लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व को डी-नोटिफाई करने का निर्णय लिया गया। इसमें कहा गया कि, शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नही करने से राज्य की कई परियोजनाएं प्रभावित हो रही है, लिहाजा इसे डी-नोटिफाई करना आवश्यक है।
इस नोटिफिकेशन को याचिकर्ता द्वारा न्यायालय में चुनौती दी गयी। पूर्व में न्यायालय ने सरकार के इस आदेश पर रोक लगा रखी है। याचिकर्ता का यह भी कहना है कि, रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर है| जो 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है और यह वन्यजीव बोर्ड द्वारा ही नोटिफाइड है । उसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकती है ?
न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तिथि निहित करते हुए राज्य सरकार से 4 सप्ताह के भीतर एक विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है।