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भाजपा की सरकार बनने के बाद इस कांजीहाउस में मर चुकी हैं 53 गाय!

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उत्तराखंड में गाय की सेहत से ज्यादा सियासत की चिंता
गौ सेवा आयोग भी नहीं लेता सुध

Defence colony kanjihouse (3)
Defence colony kanjihouse

ऐसा  लगता है कि आने वाले समय में गाय के बारे में स्कूलों में निबंध की शुरुआत कुछ यूं होगी कि गाय एक राजनीतिक पशु है। हमारी आंखों के सामने हर दिन कई गाय मर रही हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और उसके भक्तों को गाय को लेकर हिंदू-मुस्लिम सियासी समीकरण साधने से ही फुर्सत नहीं है।
छत्तीसगढ़ में २०० गायों की मौत से पूरे देश में बवाल है, लेकिन भाजपा शासित राज्य उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के मात्र

Defence colony kanjihouse (2)

एक कांजीहाउस में हुई गायों की मौत का आंकड़ा भी कम चौंकाने वाला नहीं है। देहरादून के डिफेंस कालोनी स्थित कांजीहाउस में मई से लेकर अब तक साढे तीन महीने में ही ४४ गाय मर चुकी हैं और ४ गाय एक-आध दिन में कभी भी प्राण त्याग जाने की कगार पर हैं, किंतु भाजपा के नेताओं को गाय के साथ फोटो खिंचाने से ही फुर्सत नहीं है।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और भाजपा विधायक गणेश जोशी की कुछ फोटो मीडिया में काफी प्रचारित की गई थी। जिसमें वे गाय की सेवा करते दिख रहे हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गाय के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए बीजापुर स्थित निवास में एक अदद गाय भी बांधी हुई है। उत्तराखंड में गाय के नाम पर सियासत भी होती है। गौ भक्त की एक पूरी सेना गौ तश्करी रोकने के लिए पुलिस के पैरलल छापेमारी करती है। उत्तराखंड में एक अदद गौ सेवा आयोग है, किंतु गाय कहीं सड़कों पर प्लास्टिक खा रही है तो कई दुर्घटनाओं का कारण बन रही है। या फिर कांजीहाउस जैसी जगहों पर तिल-तिल मर रही है।
देहरादून की सड़कों पर आए दिन घूमने वाली गाय और सांड दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। पिछले दो-तीन महीनों में लगभग एक दर्जन दुपहिया सवार सड़कों पर घूम रही आवारा गायों के कारण चोटिल हो चुके हैं।

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care taler soni
care taler soni

चुकी गाय जिस तरह से सड़क पर छोड़ दी जाती हैं, उससे गौभक्तों की गाय पर आस्था की कलई खुल जाती है।
चुनाव को राजनीतिक मुद्दा बनाने वाली भाजपा के कार्यकाल में अकेले देहरादून के कांजी हाउस में मार्च से लेकर अब तक कुल ५३ गायों की मौत हो चुकी है। कांजी हाउस की इन गायों की देखभाल पर प्रतिमाह लगभग ८५ हजार रुपए खर्च किया जाता है। यहां ६ लोगों का स्टाफ है।
कांजीहाउस में ये गाय एक छप्पर के नीचे इकट्ठे झुंड में खड़ी रहती हैं। काफी लंबे समय से गायों के लिए अलग-अलग केबिन बनाए जाने की मांग हो रही है।
केयर टेकर सोनी कहती हैं कि कांजी हाउस में चलने में असमर्थ गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए स्ट्रेचर की अत्यंत आवश्यकता है, लेकिन काफी मांग के बावजूद वह अभी तक भी उपलब्ध नहीं करवाई गई है।
ऐसा लगता है कि भाजपा शासित राज्य में गाय की हिफाजत नहीं, बल्कि गाय पर सियासत ज्यादा होती है। इसलिए गौ रक्षा के कर्णधारों की प्राथमिकता में गायों की दुर्दशा में सुधार करना नहीं है।
कांजीहाउस में वर्तमान में कुल ५४ गाय, बछड़े और सांड हैं। कांजीहाउस के डॉक्टर विवेकानंद सती का कहना है कि गायों को कांजीहाउस में बीमार हालत में ही लाया जाता है। ऐसे में वे अक्सर मर जाती हैं।

पर्वतजन के संवाददाता मामचन्द शाह बताते हैं कि कि एक सुबह जब वह वहां से गुजर रहे थे तो कांजीहाउस के बाहर चार कर्मचारी एक घायल गाय को मैट के सहारे अंदर ले जाने का प्रयास कर रहे थे। उस गाय को कांजीहाउस के बाहर ही किसी अज्ञात वाहन ने जोरदार टक्कर मारकर बुरी तरह जख्मी कर दिया था। जब कर्मचारी उस गाय को अंदर नहीं ले जा सके तो उन्होंने मुझसे मदद मांगी। मैंने भी कोशिश की, लेकिन फिर भी मैट में हम पांच लोग उसे अंदर नहीं करा सके। उसके बाद स्कूल जा रहे पांच-छह छात्रों से मदद मांगी, तब जाकर 10-12 लोग मैट में घसीटकर गाय को कांजीहाउस के भीतर ले जा सके। इस तरह कांजीहाउस में स्ट्रेचर न होने से जख्मी गायों को भारी कष्ट उठाना पड़ता है।

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