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 अफीम के आगोश में उत्तरकाशी

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जिला उत्तरकाशी के मोरी ब्लाक के सीमान्त गांवों में व्यापक पैमाने पर हो रही है पोस्त की प्रतिबन्धित खेती, पोस्त के फल पर चीरा लगाकर तैयार की जा रही है अफीम। सामाजिक पतन की कीमत पर साधा जा रहा आर्थिक हित

नीरज उत्तराखण्डी/उत्तरकाशी

नार्कोटिक्स तथा राजस्व विभाग की नाकामी के कारण उत्तरकाशी जनपद की पहाडिय़ों में आजकल जहर का कारोबार खूब फल फूल रहा है। अफीम तस्करों के साथ पटवारियों की सांठ-गांठ से मोरी, नौगांव में पोस्त की खेती वृहद पैमाने पर हो रही है। नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व पंचायत प्रतिनिधि ने बताया कि उन्होंने अपने शासनकाल में अपने गांव में पोस्त की खेती करने के एवज में पटवारी को 40 हजार रुपये दिए। जो अफीम उत्पादकों ने चन्दा करके एकत्र किए थे। इस कथन से यह बात साफ हो जाती है कि यह धंधा कैसे प्रशासन के सहयोग से चल रहा है।
वर्ष 2012 में मोरी बाजार मे नारको टीम के एक अधिकारी ने एक पटवारी को पोस्त की खेती करने वालों को पूर्व सूचना देकर सतर्क करने पर बुरी तरह लताड़ा था। इसी का परिणाम है कि उत्तराखंड की हिमाचल व चीन की सीमा से लगी पहाडिय़ों की गोद में बसे गांवों में अफीम की पैदावार हर साल बढ़ती जा रही है।
जानकारी के मुताबिक मोरी प्रखण्ड के पंचगाई, फतेह पर्वत, अडोर, बडासू व आराकोट क्षेत्र के 72 गांव में 100 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर पोस्त की खेती की जा रही है तथा फल पर चीरा लगा कर अफीम निकाला जा रहा है।
एक ओर नारकोटिक्स विभाग की टीम अफीम की खेती न करने को लेकर किसानों ग्रामीण स्तर पर शपथ पत्र ले रही है, वहीं अफीम उत्पादकों का कहना है कि महाराष्ट्र, कश्मीर, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की तरह यहां भी पोस्त की खेती करने की अनुमति सरकार से मिलनी चाहिए, जिससे क्षेत्र के गरीब किसानों की आर्थिकी में सुधार होगा।
प्रशासन के ढीले रवैये का माफिया पूरा लाभ उठा रहे हैं। काश्तकार खेतों में पारंपरिक एवं नगदी फसलें छोड़कर गैरकानूनी ढंग से अफीम की खेती कर रहे हैं, जिससे युवा पीढ़ी नशे की गर्त में डूबती जा रही है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय महिलाओं ने अब अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने के लिए गांव में अभियान शुरू कर दिया है। वे गांव में पंचायत कर शपथ पत्र की जगह स्थानीय देवता का प्रतीक चिन्ह डागरी या छड़ी को छुआ कर पोस्त की खेती न करने की कसमें दिला रही हंै।
हालांकि प्रशासन व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूूरो की लाख कोशिशों के बावजूद नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। अफीम उत्पादक अफीम की खेती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। विगत तीन वर्षों से राजस्व प्रशासन व नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों के साथ कई दौर की बैठकें करवा कर अफीम की खेती न करने के शपथ पत्र भी भरवाये गये। बावजूद इसके इन बैठकों का कोई असर नहीं दिखाई दिया।
विगत वर्ष हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशासन, उत्तराखंड राजस्व प्रशासन के अधिकारियों व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारी सीमांत गांवों में हो रही अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त बैठक भी कर चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
मोरी ब्लाक में नारकोटिक्स ब्यूरो व राजस्व प्रशासन की टीम अब तक 80 हैक्टेयर अफीम की खेती नष्ट कर चुकी है, लेकिन अभी जंगल से सटे सीमान्त क्षेत्र के गांवों के समीप सेब के बगीचों व वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर पोस्त की खेती खूब लहलहा रही है। प्रशासन व नारको की टीम नौगांव ब्लाक के गौडर खटाल क्षेत्र में की जा रही अफीम की खेती को नष्ट कर चुकी है। बावजूद इसके अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्रशासन की टीम नहीं पहुंच पाई है।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के तस्करों के जाल में फंसकर ग्रामीण लालच में आकर अफीम की खेती कर रहे हैं।
जिलाधिकारी डा. आशीष कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि नारकोटिक्स ब्यूरो के साथ साझा अभियान चलाकर मोरी में नशे की खेती समाप्त की जाएगी।
पटवारी या वन विभाग के कर्मचारी यदि संयुक्त रूप से ईमानदारी के साथ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ पहल करे तो अफीम उत्पादन पर अंकुश लगाया जा सकता है। अफीम उत्पादकों के विरुद्ध मुकदमें किए जाने पर भी इस खेती पर रोक लग सकती है।

अफीम उत्पादक गांव

फिताड़ी, लिवाड़ी, रेक्चा, खन्यासणी, पुजेली, भितरी, दोणी, मसरी, बरी, हडवाडी, ढिपरी, कलाप, नुराणू, खन्यासणी, गंगाड, ओसला, पवणी, ढाटमीर, देवजानी, लुदराला, पासा, पोखरी, कामडा, सरास, पेतडी, मौंडा, बलावट, झोटाडी, माकुडी, किराणू, दुचाणू, फतेह पर्वत, किरोली, कासला, सरास, ओडाढा

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