शासकीय प्रवक्ता कौशिक की राजनीतिक भूल ने करा दी सरकार की फजीहत। मुन्ना का बयान हास्यापद

शासकीय प्रवक्ता कौशिक की राजनीतिक भूल ने करा दी सरकार की फजीहत। मुन्ना का बयान हास्यापद

– बेहतर होता कि कौशिक मीडिया को ही गिना देते उपलब्धियां
– मुन्ना का बयान हास्यापद, पहले क्यों स्वीकारी चुनौती

आम आदमी पार्टी को कांग्रेस और भाजपा बहुत हलके में ले रहे हैं। दोनों दल बहुत ही कांफिडेंट हैं कि, आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में अपना वर्चस्व नहीं बना सकती है। कारण, आप के पास न तो कोई बड़ा चेहरा है और न ही उनका अभी कैडर है। जबकि भाजपा बूथ स्तर से भी आगे पन्ना तक पहुंच चुकी है और कांग्रेस मरे हुए शिकार पर अपना कब्जा करना चाहती है। यानी एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर के आधार पर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना चाहती है। दोनों दल अब तक बारी-बारी प्रदेश पर शासन करते रहे हैं। आम आदमी पार्टी के लिए महज 12 महीने का वक्त है और उन्हें लगभग 80 लाख मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में दिक्कत है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, भले ही आप का अभी प्रदेश में कोई राजनीतिक आधार नहीं है, लेकिन मनीष सिसोदिया महज तीन विजिट में ही आप को चर्चा में तो ले ही आए। जानकार बताते हैं कि, कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने भारी राजनीतिक भूल की है। उन्हें मनीष सिसोदिया की चुनौती को स्वीकार ही नहीं करना था। क्योंकि ऐसे तो कोई भी सरकार को चुनौती दे सकता है, तो क्या सरकार को उनकी चुनौती स्वीकार करनी होगी। ऐसे चुनौती देने वालों की लंबी लाइन लग जाएगी। सरकार चुनौतियों का जवाब देते-देते थक जाएगी। शायद यही कारण रहा होगा कि, कौशिक चुनौती से मुकर गये।

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और त्रिवेंद्र सरकार की फजीहत। रही-सही कसर त्रिवेंद्र चचा के विधानसभा क्षेत्र के स्कूल की हालात और वहां के गंदे टायलेट ने पूरी कर दी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मदन कौशिक को सिसोदिया के समानांतर प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार की कोई पांच उपलब्धियां गिना देनी थी। लेकिन कौशिक और भाजपा दोनों इससे चूक गये। मीडिया तब तक मनीष को जबरदस्त कवरेज दे चुका था और सोशल मीडिया पर त्रिवेंद्र सरकार की फजीहत हो चुकी थी।

पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह का यह बयान हास्यापद है कि, आप नेता इस लायक नहीं हैं कि उनका जवाब दिया जाए। राजनीति और युद्ध में कहा जाता है कि, दुश्मन को कमजोर समझना मूर्खता है। भाजपा-कांग्रेस यही कर रहे हैं। हरियाणा में 11 महीने पुरानी जेजेपी को भाजपा ने हल्के में लिया और आज आलम यह है कि, दुष्यंत चौटाला को मजबूरी में उप-मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। दिल्ली में भी यही हुआ और तीन बार से केजरीवाल सीएम है तो कांग्रेस-भाजपा सावधान।

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