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इल्जाम लगाकर नौकरी से हटाने के रूप में मिला एक दशक तक नौकरी करने का ईनाम

श्रम विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल

February 10, 2020
in पर्वतजन
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एक दशक तक नि:स्वार्थ भाव से बतौर श्रमिक नौकरी करने का ईनाम कंपनी द्वारा एक कर्मचारी पर झूठे इल्जाम लगाकर नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के रूप मिला। ऐसे में श्रम विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हंै।
रुड़की सलेमपुर राजपूतान निवासी अरुण कुमार की दास्तां आपकी भी आंखें खोल सकती है। अरुण कुमार पिछले 10 साल से हीरो मोटोकॉर्प सिडकुल हरिद्वार में नौकरी करते थे। कंपनी मैनेजमेंट द्वारा उन्हें नौकरी से निकालने की रणनीति के तहत कंपनी के प्लांट हेड मुकेश गोयल द्वारा सुमित कुमार मुजफ्फरनगर व अमित कुमार हरियाणा को अरुण कुमार के घर रुड़की भेजा गया। मुकेश गोयल द्वारा अमित व सुमित को निर्देश दिए गए कि अरुण कुमार के कंपनी की यूनियन में हस्ताक्षर करा कर ले लाओ। 17 सितंबर 2017 की शाम को अमित व सुमित, अरुण कुमार के घर पहुंचे व उनके परिजनों से अरुण कुमार के बारे में पूछा। इस पर परिजनों ने मना कर दिया कि वह तो बाजार गया है, लेकिन अमित व सुमित जबरन घर में घुसकर अरुण को ढूंढने लगे व परिजनों से मारपीट व गाली-गलौज करने लगे। यह देख गांव वालों ने अमित व सुमित की पिटाई कर दी। जिस पर कंपनी प्लांट हेड मुकेश गोयल ने अरुण को सस्पेंड कर दिया और अरुण कुमार के खिलाफ झूठी रिपोर्ट लिखवा दी, जिसमें कंपनी प्लांट हेड मुकेश गोयल द्वारा अपनी पहुंच के बल पर अरुण कुमार के मामले में अरुण के खिलाफ चार्जशीट लगवा दी गई।
अरुण कुमार के पिताजी द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट में अमित व सुमित कुमार को क्लीन चिट दिलवा दी गई।
इस घटना की शिकायत पीडि़त अरुण कुमार ने मुख्यमंत्री से लेकर विधायक तक की व स्वयं भी मिले, लेकिन कहीं से भी अरुण कुमार को इंसाफ नहीं मिला। हताश होकर अरुण कुमार ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, श्रम मंत्री, रक्षा मंत्री सभी को घटना से अवगत कराया, लेकिन वहां से भी सिर्फ आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। पीडि़त को कंपनी द्वारा 18 महीने तक सस्पेंड रखा गया व 8 महीने पहले टर्मिनेट कर दिया गया। पीडि़त जिला पुलिस शिकायत प्राधिकरण सूचना आयोग, लेबर कोर्ट, श्रम आयुक्त कार्यालय, सिविल कोर्ट, हाईकोर्ट के चक्कर काट-काट थक गया है। आज स्थिति यह है कि उसका पूरा परिवार सदमे में है। बच्चों का भविष्य बिना पढ़ाई लिखाई के अंधकार में है, किंतु कहीं से भी अरुण कुमार को इंसाफ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में श्रम विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े होना लाजिमी है।


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